Is it so ? ~ Osho


एक कहानी मैं निरंतर कहता रहा हूं। जापान के एक गांव में एक युवक संन्यासी पर आरोप है कि एक युवती गर्भवती हो गई है, उसे बच्चा हुआ है, और उसने संन्यासी का नाम ले दिया। सारा गांव इकट्ठा हो गया। उस लड़की के पिता ने उस एक दिन के बच्चे को संन्यासी के ऊपर लाकर रख दिया, और कहा कि सम्हालो, यह बच्चा तुम्हारा है! उस संन्यासी ने इतना ही पूछा, इतना ही कहा, इज़ इट सो? क्या ऐसी बात है? और तब वह बच्चा रोने लगा तो वह बच्चे को समझाने में लग गया। भीड़ उसके झोपड़े में आग लगा कर वापस लौट गई।



सुबह-सुबह यह घटना घटी। और बच्चा रोने लगा, उसका रोना बढ़ने लगा। वह भूखा है और उस बच्चे के लिए दूध चाहिए। वह संन्यासी भीख मांगने गया। उस गांव में भिक्षा मिलना अब मुश्किल थी। प्रतिष्ठा खो गई। कोई संन्यासी को तो भिक्षा देता नहीं था, उसकी प्रतिष्ठा को देता था। द्वार उसके मुंह पर बंद कर दिए गए। बच्चे उसके पीछे दौड़ रहे हैं। सारे गांव में हंसी-मजाक चल रहा है। ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि एक संन्यासी एक छोटे बच्चे को लेकर गांव में भीख मांगने निकला हो। फिर उसने उस घर के दरवाजे पर भी जाकर भीख मांगी, जिसकी लड़की का यह बच्चा था। और उसने कहा कि मुझे मत दो, मैं भूखा रह सकता हूं, लेकिन यह बच्चा मर जाएगा।
उस बच्चे की मां को होश आया। वह अपने पिता के चरणों पर गिर पड़ी। और उसने कहा कि मैं झूठ बोली हूं; इस बच्चे के असली बाप को बचाने के लिए मैंने निर्दोष संन्यासी का नाम ले दिया। मैंने यह नहीं सोचा था कि बात यहां तक बढ़ जाएगी। मैंने सोचा था, संन्यासी को परेशान करके, गांव से बाहर करके, आप वापस लौट आएंगे। लेकिन यह बात ज्यादा हो गई। और संन्यासी ने इनकार नहीं किया, इससे और मन में चुभती है बात।

बाप नीचे आया, बच्चे को संन्यासी के हाथ से वापस लेने लगा। उस संन्यासी ने पूछा, क्यों? तो उसने कहा, क्षमा करें, यह बच्चा आपका नहीं है। उस संन्यासी ने फिर उतने ही शब्द कहे, इज़ इट सो? क्या ऐसी बात है?
बस इतना ही सुबह भी बोला था वह। और इतना ही बाद में भी बोला। न उसने कहा कि बच्चा मेरा है, न उसने कहा कि बच्चा मेरा नहीं है। जो स्थिति थी, उसके लिए राजी हो गया। ऐसे व्यक्ति की अप्रतिष्ठा नहीं हो सकती। क्योंकि ऐसे व्यक्ति को आप कुछ भी करें, जैसी भी स्थिति होगी, वह उसे पूरी तरह स्वीकार करता है। उसकी स्वीकृति समग्र है।

ओशो

Comments

Popular Posts

वासना और प्रेम ~ ओशो

माया से नहीं, मन से छूटना है ~ ओशो

परशुराम को मै महापुरुष मानता ही नही ~ ओशो