परशुराम को मै महापुरुष मानता ही नही ~ ओशो


अब परशुराम को मैं कोई महापुरुष नहीं मान सकता। इससे महान हत्यारा खोजना मुश्किल। किस आधार पर महापुरुष समझो? इससे ज्यादा दुष्ट आदमी खोजना मुश्किल। अठारह बार पूरी पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर दिया!
और यह दुष्ट तो हद दर्जे का रहा होगा। क्योंकि इसके बाप को शक हो गया इसकी मां पर। यह बापों का पुराना धंधा है। और बाप ने कह दिया कि जा मां की गर्दन काट ला! और यह परशुराम अपनी मां की गर्दन काट दिया। पूत के लक्षण पालने में। तभी क्षत्रियों को समझ जाना चाहिए था कि इससे बचो, यह आदमी खतरनाक है।



अब तुम कहते हो इनको महापुरुष कहूं! हालांकि हिंदू इनको अवतार मानते हैं। जो इनको अवतार मानते हैं वे केवल अपनी बुद्धि की सूचना देते हैं। थोड़ा तो सोचो, थोड़ा तो विचारो कि इस तरह के हत्यारे लोगों को तुम अवतार कहते हो! तुम्हारा इन्हें अवतार कहना भी तुम्हारी वृत्तियों के संबंध में खबर देता है। और दूसरी तरफ तुम यह भी कहे चले जाते हो कि यह हिंदू धर्म महान धर्म। अहिंसा परमो धर्म को मानने वाला धर्म। यह तो सबके प्रति उदार। और परशुराम तुम्हारे अवतार! और तुम सबके प्रति उदार, सहिष्णु--और परशुराम तुम्हारे अवतार!
तुम जिसको महापुरुष कहते हो, उससे तुम्हारे संबंध में खबर मिलती है।
मेरी कसौटी पर जो महापुरुष नहीं है, वह नहीं है। चाहे लाखों लोगों ने उसे पूजा हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं किसी महापुरुष की निंदा नहीं करता हूं, लेकिन अब जो मुझे महापुरुष दिखाई पड़ते ही नहीं और जो तुम्हारे जीवन के आधार बन गए हैं, जो तुम्हारे जीवन में जहर घोल रहे हैं, तुम्हें उस विष से मुक्त करने के लिए मुझे चोट करनी पड़ती है।
और निंदा शब्द भी, दीनदयाल खत्री, तुमने ठीक प्रयोग नहीं किया। आलोचना निंदा नहीं है। मैं जो भी कह रहा हूं वह तुम्हारे शास्त्रों में उल्लिखित है। मैं तो सिर्फ आलोचना कर रहा हूं।

ओशो: राम नाम जान्यो नहीं (प्रवचन-10)

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