आदर्श जोड़ा ~ ओशो
आप जब आदर्श जोड़ों का जिक्र करते हैं, तो
हम कुंवारों के दिल को कुछ-कुछ होता है।
भगवान, हम क्या करें?
कृष्णतीर्थ भारती,
भैया संयम रखो। होने दो कुछ-कुछ। ध्यान ही न दो,क्योंकि
ध्यान दिया कि मुश्किल में फंसे।
एक युवक ने अपनी जान जोखिम में डाल कर एक सुंदर
कुंवारी युवती को समुद्र में डूबने से बचाया। लड़की के बाप ने कृतज्ञतापूर्ण स्वर
में कहा, शाबाश नौजवान,तुम्हारे दुस्साहस का मैं शुक्रिया किस
तरह अदा करूं?तुमने सचमुच एक बड़ा खतरा मोल लिया।
वह युवक बात काट कर बोला, खतरा
तो कोई मोल नहीं लिया, क्योंकि मैं पहले से ही विवाहित हूं।
कृष्णतीर्थ, मैं लाख कहूं
आदर्श जोड़ों की बात, तुम चक्कर में पड़ना मत। मैं तो कई उलटी-सीधी
बातें कहता हूं। मेरी सब बातों में पड़ना ही मत। और जब ऐसी बातें कहूं तो बिलकुल
चौंक गए, सुने ही मत, कान में अंगुली डाल ली।
एक पत्नी अपने पति के लिए रेडीमेड शर्ट खरीदने
गई। सेल्समैन ने पूछा, उनके गले का नाप क्या है? पत्नी
सोच में पड़ गई, फिर सोच कर कहने लगी, सही साइज तो
मुझे याद नहीं, बस इतना याद है कि जब मैं उसे गर्दन से पकड़ती
हूं तो उसकी पूरी गर्दन मेरे हाथ में आ जाती है।
तुम भैया, थोड़े सावधान
रहना।
शॉपेनहार ने कहा है: यह दुनिया बड़ी अजीब है।
यहां हर वह चीज जो आपको पसंद है, अनैतिक है, गैर-कानूनी है,
असामाजिक
है या फिर शादीशुदा है।
मगर मैं तुमसे कहता हूं: यह अच्छा ही है कि हर
चीज जो तुम चाहते हो वह अनैतिक है, गैर-कानूनी है,असामाजिक है और
शादीशुदा है, नहीं तो तुम फंस जाओ।
यह तो मैं तुम्हारी पहचान के लिए आदर्श जोड़ों
वगैरह का जिक्र कर देता हूं। अब तुमको फांस लिया न! तुम्हारे भीतर का पता लगा
लिया। तुम छिपे बैठे थे, बिलकुल संन्यासी बने हुए, कृष्णतीर्थ
भारती। तुमको कोई भी देखता गैरिक वस्त्र में, कैसे भोले-भाले,
दाढ़ी
वगैरह बढ़ाए बैठे हैं! लोग समझते संत-महात्मा हैं। आदर्श जोड़ों का जिक्र क्या किया
कि तुम जाल में फंस गए। ये तो जाल हैं जो मैं फेंकता हूं तरकीबों से। इसमें फांस लेता
हूं लोगों को।
ढब्बू जी अपने मित्र चंदूलाल से कह रहे थे कि
विवाह मैं इसलिए नहीं करना चाहता, क्योंकि मुझे स्त्रियों से बहुत डर
लगता है।
चंदूलाल ने उसे समझाया और कहा, यह
बात है तब तो तुम तुरंत विवाह कर डालो। मैं तुम्हें अनुभव से कहता हूं,क्योंकि
विवाह के बाद एक ही स्त्री का भय रह जाता है।
अफसर बोला, देखो, हमें
एक ऐसा चौकीदार चाहिए जो तंदुरुस्त हो, चुस्त चालाक चौकन्ना हो, जरूरत
पड़ने पर लोगों को धमकी भी दे सके और जिसे देख कर आदमी में दहशत दौड़ जाए, कंपकंपी
आ जाए, बुखार चढ़ जाए। यदि तुम में ऐसे गुण हों तो तुम्हें यह नौकरी मिलेगी
अन्यथा नहीं।
मुल्ला नसरुद्दीन बोला, हुजूर, मुझमें
तो ऐसे गुण नहीं मगर मेरी बीबी में ये सभी गुण हैं। मैं अभी लेकर उसे आता हूं। अरे
किसी और की क्या, तुम भी देखोगे तो एकदम कंपकंपी छूट जाएगी।
कृष्णतीर्थ, तुम सौभाग्यशाली
हो जो अभी तक बचे हो। आदर्श जोड़ों वगैरह के चक्कर में मत पड़ना।
ढब्बू जी ने अपने मित्र नसरुद्दीन को बताया कि
हमारे यहां सभी काम आपस में बांट कर किए जाते हैं। तो नसरुद्दीन ने पूछा, वह
कैसे?
ढब्बू जी बोले, इस उदाहरण से
समझिए। कल शाम की ही बात है। मेरी पत्नी ने चाय पीने की इच्छा की, मैंने
चाय बना दी, उसने चाय पी ली, और फिर मैंने
बर्तन साफ कर दिए। बस काम आपस में बंट गया। आधा-आधा। पहले उसने चाय पीने की इच्छा
की, एक काम उसने कर दिया। मैंने चाय बना दी, दूसरा मैंने कर
दिया। उसने चाय पी ली, तीसरा उसने कर दिया। मैंने बर्तन साफ कर दिए,
चौथा
मैंने कर दिया। काम भी बंट गया।
इसको कहते हैं आदर्श जोड़ा! राम मिलाई जोड़ी,
कोई
अंधा कोई कोढ़ी! आदर्श जोड़ा बड़ी कठिन चीज है। आदर्श जोड़े के लिए कई गुण होने चाहिए,
जो
बहुत मुश्किल हैं। जैसे पति को बहरा होना चाहिए, अगर आदर्श जोड़ा
चाहिए, कि पत्नी कुछ भी अंट-शंट बके,वह सुने ही नहीं। और पत्नी को अंधा
होना चाहिए, कि पति यहां-वहां देखे, इस स्त्री को
देखे उस स्त्री को देखे,आंखें मिचकाए, हाथ मटकाए,
पत्नी
को कुछ दिखाई ही न पड़े। पत्नी हो अंधी और पति हो बहरा, तब कहीं आदर्श
जोड़ा बनता है। आदर्श जोड़ा बड़ी कठिन चीज है। बहुत ही असंभव। यह दुर्घटना कभी-कभी
घटती है।
मटकानाथ ब्रह्मचारी ने ढब्बू जी को समझाते हुए
कहा,बेटा, अपनी पत्नी से लड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि
पति-पत्नी गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहियों के समान हैं।
ढब्बू जी बोले, गुरुदेव,
यह
बात तो ठीक है, परंतु जब एक पहिया साइकिल का हो और दूसरा
ट्रैक्टर का, तो आप ही बताइए गाड़ी कैसे चलेगी?
और बहुत मुश्किल है कि दोनों पहिए साइकिल के
हों कि दोनों ट्रैक्टर के हों; होता ही नहीं ऐसा। ज्योतिषी नहीं होने
देते। मां-बाप नहीं होने देते। समाज नहीं होने देता। ये तो ऐसी जोड़ियां मिलवा देते
हैं कि एक साइकिल का चक्का और एक ट्रैक्टर का। अब जो दुर्गति होने वाली है वह तुम
समझ ही सकते हो।
एक भलै आदमी रै पड़ोस में एक लड़ोकड़ी लुगाई
रैवती। आदत सूं लाचार होवण रै कारण वा नित-रोज लड़ाई करणनै त्यार रैवती। भलो आदमी
पण उण सूं आंती आयोड़ो हो। एक दिन दिनूगै इज वा उण पड़ोसी सूं आय भिड़ी अर मूडै में
आवै ज्यूं बोलण लागी--तू नीच है, तू नालायक है, तू रागस है,
म्हारे
तो इसो घर-धणी व्है तो म्हूं उणरै चार रै प्याले में जहर नाख देवती।
पड़ोसी ठीमरपणै सूं बोल्यो--अर म्हारै थां जिसी
लुगाई व्हैती तो म्हूं वा चाय गटगट करतो पी लेवतो।
और क्या करोगे !
कृष्णतीर्थ भारती, सावधान! समय
रहते सावधान! फिर पाछै पछताय होत का जब चिड़िया चुग गई खेत! एक दफा पत्नी मिल गई तो
फिर बहुत मुश्किल मामला है। जब तक नहीं मिली, परमात्मा का
धन्यवाद दो। हालांकि ज्यादा देर बच नहीं सकोगे, तुम्हारे ढंग से
ऐसा मालूम पड़ता है। और मेरे पास आकर अगर न बच सके तो इस दुनिया में फिर कहीं भी
नहीं बच सकते हो। मेरे पास यही तो सबसे बड़ी सुविधा है कि यहां स्त्री-पुरुष
एक-दूसरे से बिलकुल मुक्त हो जाते हैं। इतनी स्त्रियां हैं, इतने पुरुष हैं
और इतने खेल देखते हैं कि रोज परमात्मा को धन्यवाद देते हैं कि अहा, क्या
बचाया! इस बाई से बचा दिया, उस बाई से बचा दिया! नहीं तो इस संसार
में कितने जाल हैं। इतने जाल तुम्हें कहीं इकट्ठे एक जगह दिखाई पड़ेंगे नहीं। तो
यहां अगर अनुभव नहीं हो पाया तो समझो तुम फिर जनम-जनम तक आवागमन में भटकोगे। फिर भवसागर
पार होना बहुत मुश्किल है।
ओशो
पुस्तक- सहज आसिकी नाहिं (प्रवचन-02)
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