सब जोरू के गुलाम हैं ~ ओशो


मैंने सुना है, एक सम्राट ने...दरबार में बात चलती थी, गपशप चलते-चलते बात यूं पहुंच गई कि एक दरबारी ने कह दिया कि आपके दरबारी बातें तो बड़ी ऊंची करते हैं, मगर जहां तक मैं जानता हूं, सब जोरू के गुलाम हैं। सम्राट को धक्का लग गया। उसके दरबारी और जोरू के गुलाम! उसने कहा, सिद्ध करना होगा।

उस व्यक्ति ने कहा: अभी सिद्ध कर देता हूं। वह खड़ा हो गया और उसने कहा कि जो-जो जोरू के गुलाम हैं, वे एक लाइन में खड़े हो जाएं। और अगर किसी ने झूठ बोला, क्योंकि तुम्हारी जोरुओं से पूछा जाएगा, उनको दरबार में बुलाया जाएगा; जो झूठ बोलेगा, उसकी फांसी सजा है। और जो जोरू के गुलाम नहीं हैं, वे इस तरफ लाइन लगा कर खड़े हो जाएं।


जोरुओं के गुलामों की लाइन तो इतनी बड़ी लगी कि दरबार छोटा पड़ने लगा। सम्राट भी थोड़ा हिचकिचाया। सिर्फ एक आदमी खड़ा हुआ उस लाइन में, जो जोरुओं के गुलामों की नहीं थी। सिर्फ एक आदमी, जिसकी कि सम्राट कभी कल्पना ही नहीं कर सकता था। बिलकुल मरा-खुचा, वही आदमी सबसे गया-बीता था उस दरबार में! सम्राट ने कहा कि चलो कोई बात नहीं, कम से कम एक तो है मर्द बच्चा!

उस आदमी ने कहा: ठहरिए, आप गलत मत समझ लेना। मैं जब घर से चलने लगा तो मुन्नू की मां बोली कि देखो, भीड़-भाड़ में खड़े मत होना! इसलिए मैं यहां खड़ा हूं। और कोई कारण नहीं है मेरे खड़े होने का। वहां भीड़-भाड़ बहुत ज्यादा है।

तब तो सम्राट ने कहा कि कुछ खोज-बीन करनी पड़ेगी। क्या राज्य इतना दयनीय है हमारा, कि जब दरबारियों की यह हालत है, तो राज्य की क्या होगी! उसने उसी आदमी को जिसने यह सवाल उठाया था और सिद्ध भी कर दिया था, कहा कि तू, ये मेरे पास दो सुंदर घोड़े हैं--एक सफेद और एक काला--ये दोनों घोड़े लेकर जा और साथ में बहुत सी मुर्गियां भी ले जा। और हर घर के सामने राजधानी में जाना और हर घर के मर्द से पूछना कि तू जोरू का गुलाम तो नहीं है? और बता देना कि अगर झूठ बोला, तो यह जिंदगी और मौत का सवाल है। सम्राट जांच-पड़ताल कर रहा है। सच ही बोलना, नहीं तो झंझट हो जाएगी। और जो कहे कि हां, जोरू का गुलाम हूं, उसको एक मुर्गी पकड़ा देना ईनाम में। और अगर कहीं कोई आदमी मिल जाए जो जोरू का गुलाम न हो, तो इन दो शानदार घोड़ों में, इतने कीमती घोड़े जमीन पर नहीं हैं, उससे कह देना कि तू चुन ले जो तुझे चाहिए--काला या सफेद, तेरा है वह घोड़ा।

वह आदमी गया। स्वभावतः बांटता गया मुर्गियां, बांटता गया मुर्गियां। मुर्गियों पर मुर्गियां सम्राट को भेजनी पड़ीं। जितनी मुर्गियां मिल सकती थीं बाजार में, खरीदवानी पड़ीं, क्योंकि राजधानी और हर एक को मुर्गी देनी पड़ रही है। सम्राट भी घबड़ाने लगा, यह खजाना लुट जाएगा मुर्गियों में। सोचता था कि जल्दी कोई मिल जाएगा जो घोड़ा ले लेगा, बात खतम हो जाएगी। मगर जब तक घोड़ा न लेने वाला मिले, तब तक मुर्गियां बांटनी पड़ेंगी।

आखिर एक घर के सामने उस दरबारी को भी लगा कि अब आ गया वह आदमी जिसको घोड़ा देना पड़ेगा। ऐसा आदमी उसने देखा ही नहीं था। क्या तो उसके अंग थे! क्या उसकी देह थी, लोह जैसी! ऐसा बलिशठ आदमी कि घूंसा मार दे दीवाल को तो दीवाल गिर जाए, कि सींकचों को हाथ से दबा दे तो टूट जाएं। उसकी मसल देखने लायक थी। सर्दी के दिन थे, सुबह ही सुबह धूप ले रहा था वह और मालिश कर रहा था अपने शरीर की। उसकी मसलों का उठाव-चढ़ाव! वह आदमी थोड़ी देर खड़ा देखता रहा--दरबारी, और उसने कहा कि भाई, मैं यह पूछने आया हूं, सम्राट पता लगवा रहे हैं कि तुम जोरू के गुलाम तो नहीं हो?

उसने कहा: मैं और जोरू का गुलाम! उसने अपना हाथ उसके पास ले जाकर अपनी मसल दिखाईं और कहा: ये मसलें देखी हैं! जरा यह पंजा अपने हाथ में ले। दरबारी का पंजा अपने हाथ में लेकर जो उसने दबाया तो दरबारी की चीख-पुकार निकल गई। दरबारी ने कहा: मारा, मर गया! बचाओ! छोड़ो, यह क्या करते हो? जान लोगे क्या मेरी? मैं तो सिर्फ पूछने आया हूं, मुझे कोई प्रमाण नहीं चाहिए।

उसने कहा: मैं और जोरू का गुलाम! शब्द वापस लो, नहीं तो जिंदा नहीं लौटोगे। ऐसी की तैसी घोड़ों की और ऐसी की तैसी तुम्हारी! ये तुमने शब्द बोले कैसे?
उसने कहा: भाई, मैं माफी मांगता हूं, पैर छूता हूं। मुझे तो जाने दो। मेरा कोई कसूर नहीं है। सम्राट का मामला है, उसने भेजा है। मुझे आना पड़ा। तुम चुन लो, जो घोड़ा तुम्हें चाहिए।
और उसने कहा कि मुन्नू की मां, सफेद घोड़ा लें कि काला? और एक दुबली-पतली मरियल सी स्त्री बाहर निकली और उसने कहा: काला लेना!
और दरबारी ने कहा: यह ले मुर्गी।

परमात्मा भी दरवाजे पर खड़ा हो तो मुन्नू की मां को पूछना ही पड़ेगा! यह तुम्हारी जिंदगी जो है, भयाक्रांत है, भय पर खड़ी है। यहां सब तरफ से डराने वाले लोग हैं। पहले बाप डराते हैं, मां डराती है; फिर पत्नी डराती है; फिर हालत यहीं नहीं समाप्त होती, बच्चे डराते हैं, बच्चे भयभीत करवाते हैं। दफ्तर जाओ तो आफिसर डरवाता है। कहीं नौकरी करो तो मालिक डरवाता है। जहां निकलो वहीं डरवाने वाले लोग। सब तरफ से तुम डरे हुए हो। मंदिर भी तुम जाते हो--डर के कारण। प्रार्थना भी तुम करते हो--डर के कारण।

रहिमन धागा प्रेम का
ओशो

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