सुनो भाई साधो , प्रवचन # 10



हैदराबाद के निजाम के पास शायद सबसे ज्यादा धन था दुनिया में। गोलकुंड़ा के इतने हीरेजवाहरात इकट्ठे कर लिए थे। उनसे बड़ा धनी आदमी दूसरा नहीं था। वर्ष में एक बार जब वह अपने सब हीरेजवाहरातों को रोशनी दिखाने के लिए निकालते थे, तो सात छतों की जरूरत पड़ती थी उनको फैलाने के लिए। चोटी पर थे। लेकिन जब रात सोते थे, तो एक पैर एक बड़ी मटकी मेंजिसमें नमक भरा होउसमें डालकर और बांधकर सोते थे। क्योंकि भूत से उन्हें बहुत डर लगता था। और यह भूत से बचने की तरकीब थी: नमक पास हो तो भूत हमला नहीं करता। इस भय के कारण, इस भूत के भय के कारण वे कमजोर से कमजोर, गरीब से गरीब नौकर से भी दीन थे। नौकर भी उन पर हंसते थे कि यह क्या मालिक, आप और ऐसे भयभीत। हम नहीं डरते, कहा का भूत। यह क्यों इतनी बड़ी कुंडी बांधकर आप सोते हैं? लेकिन पूरी जिंदगी ही वे कुंडी बांधकर सोते रहे। उस भूत के भय के कारण जीवन उनका बड़ा दुखी था; क्योंकि चौबीस घंटे एक ही चिंता थी और वे मन ही मन में कई बार कहते भी थे कि गरीब से गरीब आदमी होना मैं पसंद करता, मगर निर्भय। दुनिया का सबसे बड़ा अमीर होकर भी क्या सार है: ऐसा भयभीत हूं। फकीर को, नंगे भिखारी को देखकर भी वे ईष्या से भर जाते थे कि कैसे निर्भय चला जा रहा है, कहीं भी सो जाता है; कोई चिंता नहीं, कोई डर नहीं।




...क्या करोगे? हैदराबाद के निजाम के पास पांच सौ स्त्रियां थीं, इस जमाने में। तुमने कृष्ण का सुना है कि सोलह हजार स्त्रियां थीं। संदेह मत करना; क्योंकि बीसवीं सदी में जब पांच सौ हो सकती हैं तो सोलह हजार कोई ज्यादा नहीं हैंसिर्फ बत्तीस गुनी।...हो सकती हैं।
पांच सौ स्त्रियां थीं, लेकिन यह आदमी सदा दीनहीन था। धन था, लेकिन यह आदमी दरिद्र से ईष्या करता था। मौत का भय इतना ज्यादा था कि जीना ही असंभव था।
अमेरिका का बहुत बड़ा करोड़ पति था, इन्डरू कार्नेगी। जब वह मरा तो उसके सेक्रेटरी ने उससे पूछा कि आप अपार संपदा के मालिक हैं, (दस अरब रुपये वह कैंश बैंक में छोड़कर गया) आप प्रसन्न तो मर रहे हैं? प्रसन्न तो छोड़ रहे हैं इस जगत को?
उसने कहा, कैसी प्रसन्नता? मुझसे असफल आदमी खोजना कठिन है, क्योंकि मेरे इरादे सौ अरब रुपये इकट्ठे करने के थे और दस अरब ही कर पाया। हारा हुआ आदमी हूं।
उसने दस अरब इस तरह कहे, जैसे कोई कहे: दस पैसे। लेकिन उसके लिए वे दस पैसे ही थे। क्योंकि जिसके इरादे सौ के रहे हों, दस ही उपलब्ध कर पाये, वह हारा हुआ ही हैनब्बे से हारा हुआ।
तो वह दुखी ही मर रहा है। और उसके सेक्रेटरी ने उसकी जीवन कथा लिखी है। तो उसमें लिखा है कि अगर मुझसे कोई कहता कि बदल लो जगह एन्डरू कार्नेगी से, तो मैं न बदलता। वह अगर सेक्रेटरी बनना चाहता और मैं मालिक, तो मैं न बनता। क्योंकि उसका सेक्रेटरी होकर जितना मैं प्रसन्न था, उतना वह मालिक होकर नहीं था।
उसने लिखा है कि दफ्तर का चपरासी दस बजे आए, क्लर्क साढ़े दस बजे आए, मैनेजर बारह बजे आए; मैनेजरर्स तीन बजे चले जाए, क्लर्क साढ़े चार बजे छुट्टी पा लें, चपरासी पांच बजे चला जाए। लेकिन एन्डरू कार्नेगी सुबह सात बजे से जुट जाए दफ्तर में, रात बारह बजे तक।
कहानियां प्रचलित हैं कि एन्डरू कार्नेगी अपने बच्चों को नहीं पहचान पाता था, क्योंकि फुर्सत ही कहां थी! सात बजे से लेकर बारह बजे रात तक जो जुटा हो, वह क्या बच्चों को पहचानेगा! उसके साथ कभी खेला नहीं, कभी दो बात नहीं की, कभी बैठा नहीं।
तुम धन पा लो तो और हजार चीजें हैं। तुम पद पा लो तो भी हजार चीजें हैं। तुम कुछ भी पा लो, तुम तृप्त न हो सकोगेजब तक तुलना है, जब तक तराजू तौलता है। जिस दिन तुम कंपेरिजन छोड़ दोगे, उसी दिन तुम मुक्त हो जाओगे। जिस दिन तुम यह खयाल ही छोड़ दोगे कि दूसरे से तौलना है स्वयं को, उसी दिन दुख खो जाएगा। उस दिन तुम पाओगे कि तुम तुम हो; दूसरे दूसरे हैं; बात खतम हो गई।

 सुनो भाई साधो , प्रवचन # 10 
 ओशो

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