चलते बनो....


मैं वर्षों तक जबलपुर रहा! वहां एक स्थान है पहाड़ियों में गुप्तेश्वर। गुप्तेश्वर के पीछे एक गुफा में एक साधु वर्षों से रहता है। वह गुफा प्यारी थी! एक दिन मैं भी जाकर वहां बैठ रहा। साधु कहीं बाहर गया था, स्नान करने गया था, लौटकर आया, उसने कहा आप यहां पर कैसे बैठे हैं? यह गुफा मेरी है!

मैंने उससे पूछा घर किसलिए छोड़ा, अगर गुफा तुम्हारी हो गयी? घर मेरा था, उसे छोड़कर आ गए हो; अब कहते हो गुफा मेरी!

महल छूट जाते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता; लंगोटियों पर मोह लग जाता है, कि लंगोटी मेरी है!

समझदार आदमी था; उसकी आंख में आंसू आ गए। उसने कहाः मुझे क्षमा कर दें! यह "मेरा" शब्द जाता ही नहीं। आप ठीक ही कहते हैं। सब छोड़कर आ गया हूं, लेकिन यह "मेरा" शब्द नहीं जाता।

संत चले दिस ब्रह्मा की, तजि जग व्यवहारा।
ब्रह्म की दिशा में जो चले वह संत! प्रेम ब्रह्मा की दिशा है। और प्रेम अंतःस्तल में पड़ा है। वह अमोलक हीरा--सुंदरदास ने कहा--तुम्हारे भीतर पड़ा है। उस दिशा में चलो!

और भी एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही हैः जगत् को छोड़ने को नहीं कहा है, जगत् व्यवहार को छोड़ने को कहा है। दोनों में बड़ा फर्क है। जगत् को तो छोड़कर जाओगे कहां? जहां जाओगे वहीं जगत् है। हिमालय पर जाओगे, वहां जगत् है। गुफा में बैठ जाओगे वहां जगत् है। यही हवा, यही सूरज, यही चांदत्तारे वहां भी होंगे। और अगर तुम यहां से चले भी गए हिमालय, तो तुम तो कम-से-कम वही होओगे जो यहां थे। और जो तुम्हारे भीतर यहां था, वही वहां भी तरंगें लेगा। यहां अगर तुमने अपने मकान से मोह बांध लिया था तो वहां किसी वृक्ष के नीचे बैठकर उसी वृक्ष से मोह बांध लोगे। झगड़े हो जाते हैं जंगल में। एक साधु एक वृक्ष के नीचे दो-चार साल रह गया, वह उसकी बपौती हो गयी। दूसरा साधु आकर वहां डेरा रखने लगे, वह कहेगा उठाओ! चलते बनो! यह वृक्ष मेरा है! यह गुफा मेरी है।

जगत् छोड़ने से जाएगा भी नहीं। जगत् व्यवहार छोड़ने से जाएगा! और वह बड़ी अनूठी बात है--जगत्-व्यवहार छोड़ना! मेरात्तेरा जगत्-व्यवहार है। काम-चलाऊ है। यहां कौन किसका है! कौन अपना है कौन पराया है! चार दिन का मेला है, मेले में मिलना हो गया है। दोस्तियां बन गयी हैं, दुश्मनियां बन गयी हैं। कोई अपना हो गया है, कोई पराया हो गया है। यह सब व्यवहार है। इससे व्यवहार की तरह जान लेना, इससे मुक्त हो जाना है। इसको जिसने सत्य मान लिया, वह इसमें उलझ जाता है। इसे व्यवहार ही समझो। व्यवहार है तो कोई अड़चन नहीं है।

ज्‍योत से ज्‍योत जले🏵️ओशो

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