बुद्ध के पुनर्जन्‍म का रहस्‍य ~ ओशो

बुद्ध के पुनर्जन्‍म का रहस्‍य

यह जरा कठिन बात है। इसलिए मैंने कल छोड़ दिया था, क्‍योंकि इसकी लंबी ही बात करनी पड़ेगी, लेकिन फिर भी थोड़े में समझ लें। सातवें शरीर के बाद वापिस लौटना संभव नहीं है। सातवें शरीर की उपलब्‍धि के बाद पुनरागमन नहीं है। वह प्‍वाइंट ऑफ नौ रिटर्न है। वहां से वापिस नहीं आया जो सकता। लेकिन दूसरी बात सही है जो मैंने कही है…..कि बुद्ध कहते है कि मैं एक बार और आऊँगा, मैत्रेय के शरीर में….मैत्रेय नाम से एक बार और वापस लौटूंगा। अब ये दोनों ही बातें तुम्‍हें विरोधी दिखाई पड़ेगी, क्‍योंकि मैं कहता हूं, सातवें शरीर के बाद कोई वापिस नहीं लौट सकता। और बुद्ध का यह वचन है कि वापिस लौटगें और बुद्ध सातवें शरीर को उपलब्‍ध होकर महानिवार्णा में समाहित हो गये है। तब यह कैसे संभव होगा? इसका दूसरा ही रास्‍ता है।



असल में सातवें शरीर में प्रवेश के पहले…..अब तुम्‍हें थोड़ी सी बात समझनी पड़े….जब हमारी मृत्‍यु होती है तो भौतिक शरीर गिर जाता है, लेकिन बाकी कोई शरीर नहीं गिरता। मृत्‍यु जब हमारी होती है तो भौतिक शरीर गिरता है, बाकी छह शरीर हमारे….हमारे साथ रहते है। जब कोई पांचवें शरीर को उपलब्‍ध होता है, तो शेष चार शरीर गिर जाते है और तीन शरीर शेष रह जाते है, पांचवां, छठवाँ और सातवां। पांचवें शरीर की हालत में, यदि कोई चाहेयदि कोई चाहेपांचवें शरीर की हालत तो में, तो ऐसा संकल्‍प कर सकता है कि उसके बाकी दूसरे और तीसरे और चौथे शरीर रह जायें। और अगर वह संकल्‍प गहरा किया जाये, और बुद्ध जैसे आदमी को यह संकल्‍प गहरा करने में कोई कठिनाई नहीं है, तो वह अपने दूसरे तीसरे और चौथे शरीर को सदा के लिए छोड़ जा सकता है। ये शरीर शक्‍ति पुंज की तरह अंतरिक्ष मैं भ्रमण करते रहेंगे। दूसरा इथरिक जो भाव शरीर है।

तो बुद्ध की भावनाएं….बुद्ध ने अपने अनंत जन्‍मों की भावनाएं अर्जित की है, वे इस शरीर की संपति है। उसके सब सूक्ष्‍म तरंग इस शरीर में समाहित है। फिर एस्‍ट्रल बॉडी, सूक्ष्म शरीर,इस सूक्ष्‍म शरीर में बुद्ध के जीवन की जितनी सूक्ष्मतम कर्मों की उपलब्धियां है, उन सबके संस्‍कार इसमें शेष है। और चौथा शरीर मनस शरीर, मेंटल बॉडी बुद्ध के मनस की सारी उपलब्धि या, और बुद्ध ने जो मनस के बाहर उपलब्‍धियां की है वह भी की तो मन से ही है। उनको अभिव्‍यक्‍ति तो मन से ही देना पड़ती है। कोई आदमी पांचवें शरीर से भी कुछ पाये,सातवें शरीर से भी कुछ पाये,जब भी कहेगा तो उसको चौथे शरीर का ही उपयोग​ करना पड़ेगा। कहने का वाहन तो चौथा शरीर ही होगा।

तो बुद्ध की जितनी वाणी दूसरे लोगों ने सुनी है, वह बहुत कम है। सबसे ज्‍यादा वाणी तो बुद्ध के ही चौथे शरीर ने सुनी है। जो बुद्ध ने सोचा भी है जिया भी है, देखा भी है, समझा भी है। वह सब चौथे शरीर में संग्रहीत है, ये तीनों शरीर सहज तो नष्‍ट हो जाते हैपांचवें शरीर में प्रविष्‍ट हुए व्‍यक्‍ति के तीनों शरीर नष्‍ट हो जाते है; सातवें शरीर में प्रविष्‍ट हुए व्‍यक्‍ति के बाकी छह शरीर नष्‍ट हो जाते है। लेकिन पांचवें शरीर वाला व्‍यक्‍ति यदि चाहे तो इन तीन शरीरों के संघट को, संघट को, अंतरिक्ष में छोड़ सकता है। ये ऐसे ही अंतरिक्ष में छूट जायेंगे, जैसे अब हम अंतरिक्ष में कुछ स्टेशन (विराम-स्‍थल) बना रहे हैवे अंतरिक्ष में यात्रा करते रहेंगे, और मैत्रेय नाम के व्‍यक्‍ति में वे प्रकट होंगे।

सूक्ष्‍म शरीर का परकाया प्रवेश

तो कभी जो मैत्रेय नाम की स्‍थिति का कोई व्‍यक्‍ति पैदा होगा, उस स्‍थिति का जिसमें बुद्ध के ये तीनों शरीर प्रवेश कर सकें, तो यह तीनों शरीर तब तक प्रतीक्षा करेंगे और उस व्‍यक्‍ति में प्रवेश कर जायेगे। उस व्‍यक्‍ति में प्रवेश करते ही। उस व्‍यक्‍ति की हैसियत ठीक वैसी हो जायेगी जैसी बुद्ध की थी; क्‍योंकि बुद्ध के सारे अनुभव बुद्ध के सारे भाव बुद्ध की सारी कर्म व्‍यवस्‍था का यह पूरा इंतजाम है।

ऐसा समझ लो कि मेरे शरीर को मैं छोड़ जा सकूँ इस घर मेंसुरक्षित कर जा सकूँ

जैसे अभी अमरीका में एक आदमी मराकोई तीन साल पहलेतो वह कोई करोड़ों डालर का ट्रस्‍ट कर गय, और कह गया कि मेरे तब तक मेरे शरीर को तब तक बचाना जब तक साइंस(विज्ञान) इस हालत में न आ जाए कि उसको पुनरुज्जीवित कर सके। तो उसके शरीर पर लाखों रूपये खर्च हो रहा है। उसको बिलकुल वैसे ही सुरक्षित रखना है। उसमें जरा भी खराबी न हो जाए। उस समय तकअगर इस सदी के पूरा होते-होते हम शरीर की पुनरुज्जीवित कर सकें, तो वह शरीर पुनरुज्जीवित हो जायेगा।

निश्‍चित ही,उस शरीर को दूसरी को दूसरी आत्‍मा उपल्‍बध होगी, वह आत्‍मा उपलब्‍ध नहीं हो सकती। लेकिन शरीर वह रहेगा, उसकी आंखे वह रहेंगी, उसके चलने का ढंग यह रहेगा,उसका रंग वह रहेगा, उसका नाक-नक्‍श यह रहेगाइस शरीर की आदतें उसके साथ रहेंगी। एक अर्थ में वह उस आदमी को रिप्रजेंट (पुन: प्रस्तुत) करेगा, इस शरीर से। और अगर वह आदमी सिर्फ भौतिक शरीर पर ही केंद्रित था, जैसा की होना चाहिए, नहीं तो भौतिक शरीर को बचाने की इतनी आकांशा नहीं हो सकती। तो अगर वह शरीर भौतिक शरीर ही था, बाकी शरीरों का उसे कुछ भी पता नहीं था, तो कोई भी दूसरी आत्‍मा बिलकुल एक्‍ट (क्रिया) कर पायेगी। वह बिलकुल वही हो जायेगी और वैज्ञानिक दावा भी करेंगे कि वह यही आदमी था। जो मर गया था, और इसमें कोई फर्क नहीं करेंगे। उस आदमी की सारी स्‍मृतियां जो इसके भौतिक ब्रेन में संरक्षित होंगी, वह सब जग जायेगी। वह फोटो पहचान कर बात देगा, कि यह मेरी मां की फोटो है। वह बता सकेगा कि यह मेरे बेटे की फोटो है। ये सब मर चुके है तब तक, लेकिन वह फोटो पहचान लेगा। वह अपना गांव पहचान कर बता सकेगा। कि यह रहा मेरा गांव जहां में पैदा हुआ था; और यह रहा मेरा गांव जहां मैं मरा था। और ये-ये लोग थे जब मैं मरा थ तो जिंदा थे। लेकिन यह आत्‍मा दूसरी है। लेकिन ब्रेन के पास जो मैमोरी कंटैंट्स(स्‍मृति सामग्री) है वह दूसरा है।

स्‍मृति का पुनरारोपण

अभी वैज्ञानिक कहते है कि हम बहुत जल्‍दी स्‍मृति को ट्रांसप्‍लांट (पुन: रोपित) कर पायेंगे। यह संभव हो जायेगा। इसमें कठिनाई नहीं मालूम होती। अगर मैं मरूं तो मेरी अपनी एक स्‍मृति हे….ओर बड़ी संपत्‍ति खोती है दुनिया की; क्‍योंकि में मरता हूं तो मेरी सारी स्‍मृति खो जायेगी। अगर मेरी सारी स्‍मृति की पूरी की पूरी टेप, पूरा यंत्र मेरे मरने के साथ बचा लिया जायेजैसे हम आँख बचा लेते है अब; कल तक आँख ट्रांसप्लांट नहीं होती थी। अब हो जाती है। अब मेरी आँख से कल कोई दूसरा देख सकेगा। सदा में ही देखू अब यह बात गलत है; अब मेरी आँख कोई दूसरा भी देख सकेगा। और सदा मेरे ह्रदय से मैं ही प्रेम करूं, यह भी गलत है; ह्रदय से कोई दूसरा भी प्रेम कर सकेगा।

अब ह्रदय के सबंध में बहुत वादा नहीं किया जा सकता कि मेरा ह्रदय सदा तुम्‍हारा रहेगा। वैसा वादा करना बहुत मुशिकल है। क्‍योंकि यह ह्रदय किसी और के भीतर से किसी और को वादा कर सकेगा। इसमे अब कोई कठिनाई नहीं रह गयी। ठीक ऐसे ही कल स्‍मृति भी ट्रांसप्‍लांट हो जायेगी। वह सूक्ष्‍म है, बहुत डेली केट (नाजुक) हैइसलिए देर लग रही है। और देर लगेगी। कल मैं मरूं तो जैसे में आज अपनी आँख दे जाता हूं आई बैंक (नेत्र कोष) को, ऐसे ही मैमोरी बैंक (स्मृति कोष) को अपनी स्‍मृति दे जाऊँ, और कहूं कि मरने के पहले मेरी सारी स्‍मृति बचा ली जाये, और किसी छोटे बच्‍चे से ट्रांसप्‍लांट कर दी जाये। तो जिस छोटे बच्‍चे को मेरी स्‍मृति दे दी जायेगी। मुझे जो बहुत कुछ जानना पड़ा,वह उस बच्‍चे को जानना नहीं पड़ेगा। वह जाने हुए ही बड़ा होगा। वह उसकी स्‍मृति का हिस्‍सा हो जायेगा। वह उसको ऐब्जार्बर (अपोषित) कर जायेगा। इतनी बातें वह जानेगा ही। और तब बड़ी मुशिकल हो जायेगी। क्‍योंकि मेरी स्‍मृति उसकी स्‍मृति हो जायेगी। और वह कई मामलों में ठीक मेरे जैसा ही उत्‍तर देगा। और कई मामलो में ठीक मेरे जैसे ही पहचान दिखलायेगा; क्‍योंकि उसके पास ब्रेन (मस्‍तिष्‍क) के पास मेरा ब्रेन है। मेरा मतलब समझ रहे हो तुम?

तो बुद्ध ने एक दूसरी दिशा में प्रयोग किया हैऔर भी लोगों ने प्रयोग किये है…. और वे वैज्ञानिक नहीं थे। वे आकंल्‍ट (परा वैज्ञानिक) है। उसमे दूसरे, तीसरे और चौथे को संरक्षित करने की कोशिश की गयी है। बुद्ध तो विलीन हो गये। वह जो आत्‍मा थी, वह जो चेतना थी जो इन शरीरों के भीतर जीती थी। वह तो खो गयी। सातवें शरीर से,लेकिन खोने के पहले वह इंतजाम कर गयी है कि यक तीन शरीर ने मरे। वह इनको संकल्प की एक गति दे गई है।

समझ लो कि मैं एक पत्‍थर फेंकूंगा जो सेइतने जोर से फेंकूंगा कि वह पत्‍थर पचास मील जा सके। मैं मर जाऊँ, लेकिन इससे पत्‍थर नहीं गिर जायेगा। जो ताकत मैंने उसको दी है वह पचास तक चलेगी। पत्‍थर यह नहीं कह सकता कि वह आदमी तो मर गया, जिसने यह पत्‍थर फेंका था अब मैं क्‍यों चलू। पत्‍थर को जो ताकत दी गई थी। पचास मिल चलने की, वह पचास मील चलेगा। अब मेरे मरने जीने से कोई संबंध नहीं, मेरी ताकत उस पत्‍थर को लग गयी, अब वह काम करेगा। इसी तरह बुद्ध ने अपने तीन शरीरों के लिए तो ताकत दी और उन्हें छोड़ तब कह दिया थ ये 2500 साल तक जीवित रहेगें। इस बीच अगर कोई मैत्रेय नाम का आदमी पैदा हो गया तो ये उनमें प्रवेश पास सकेगें। वरना वह विनिष्‍ट हो जायेगे।

कृष्‍ण मूर्ति में बुद्ध के अवतरण का असफल प्रयोग

बुद्ध जो ताकत दे गये है उन तीन शरीरों को जीवित रहने की, वे तीन शरीर जायेंगे। और वह समय भी बता गये थे कितनी देर तक….यानी वह वक्‍त करीब है जब मैत्रेय को जन्‍म लेना चाहिए। कृष्‍ण मूर्ति पर वहीं प्रयोग किया गया था कि इनकी तैयारी कि जाये। वे तीन शरीर इनको मिल जायें। कृष्‍ण मूर्ति के बड़े भाई थे नित्या नंद। पहले उन पर भी यह प्रयोग किया गया था पर उनकी मृत्‍यु हो गई। वह मृत्‍यु इसी प्रयोग में हुई। क्‍योंकि यह बहुत अनूठा प्रयोग था और इस प्रयोग को आत्‍मसात करना आसन बात नहीं थी। कोशिश की गयी की नित्या नंद के तीन शरीर खुद के तो अलग हो जायें और मैत्रेय के तीन शरीर उनमें प्रवेश कर जायें। नित्या नंद तो मर गये, फिर कृष्‍ण मूर्ति पर भी वहीं कोशिश चली। वह भी कोशिश यही थी कि इनके तीन शरीर हटा दिये जायें अरे री प्लेस (बदल) कर दिये जायें। वह भी नहीं हो सका। फिर और एक दो लोगों पर भी वहीं कोशिश की गयी, जॉर्ज अरंडेल पर, क्‍योंकि कुछ लोगों को इस बात काजैसे ब्‍लाह्रटस्‍की इस सदी में ऑकल्‍ट (परा विज्ञान) के संबंध में जानने वाली शायद सबसे गहरी समझदार औरत थी। उसके बाद ऐनीबेसेंट के पास बहुत समझ थी, लेडबीटर के पास बहुत समझ थीइन लोगों के पास कुछ समझ थी जो इस सदी में बहुत कम लोगों के पास है।

इनकी बड़ी चेष्‍टा यह भी कि वह तीन शरीरों को जो शक्‍ति दी गयी थी। उसके क्षीण होने का वक्‍त आ रहा है। अगर मैत्रेय जन्म नहीं लेता, तो वह शरीर बिखर सकते है। उनको इतने जोर से फेंका गया था वह समय पूरा हो जायेंगा,और किसी को अब तैयार होना चाहिए कि वह उन तीन शरीरों को आत्‍मसात कर ले। जो व्‍यक्‍ति भी उनको तीनों को आत्‍मसात कर लेगा। वह ठीक एक अर्थ में बुद्ध का पुनर्जन्‍म होगाएक अर्थ में….मेरा मतलब समझे। बुद्ध की आत्‍मा नहीं लौटेगा। इस व्‍यक्‍ति की आत्‍मा बुद्ध के शरीर ग्रहण करने बुद्ध का काम करने लगेगीएक दम बुद्ध के काम में संलग्‍न……

इस लिए हर कोई व्‍यक्‍ति नहीं हो सकता इस स्‍थिति में। जो होगा भी, वह भी करीब-करीब बुद्ध के पास पहुंचने वाली चेतना होनी चाहिए। तभी उन तीन शरीरों को आत्‍मसात कर पायेगी, नहीं तो मर जायेगी। तो जो असफल हुआ सारा का सारा मामला, वह इसीलिए असफल हुआ कि उसमें बहुत कठिनाई है। लेकिन फिर भी अभी भी चेष्टा चलती है। अभी भी कुछ छोटे से इज़ोटेरिक सर्कल (गुह्म विद्या मंडल) इसकी कोशिश में लगे है। कि किसी बच्‍चे को वे तीन शरीर मिल जायें। लेकिन अब उतना व्‍यापक प्रचार नहीं चलता, प्रचार से नुकसान हुआ।

कृष्‍ण मूर्ति के साथ संभावना थी कि शायद वे तीन शरीर कृष्‍ण मूर्ति में प्रवेश कर जाते। उसके पास उतनी पात्रता थी। लेकिन इतना व्यापक प्रचार किया गया। प्रचार शुभ दृष्‍टि से किया गया था। कि जब बुद्ध का आगमन हो तो वे फिर से रिकग्‍नाइज़ हो सकें, (पहचाने जा सकें) और यह प्रचार इस लिए भी किया गया था कि बहुत से लोग जो बुद्ध के समय में जीवित थे। उनकी स्‍मृति जगाई जा सके। वे पहचान सके की यह आदमी वहीं है कि नहीं। इस ध्‍यान से प्रचार किया गया था। लेकिन यह प्रचार घातक सिद्ध हुआ। और उस प्रचार ने कृष्‍ण मूर्ति के मन में एक रिएक्‍शन और प्रतिक्रिया को जन्‍म दे दिया। वह संकोची और छुई-मुई व्‍यक्‍तित्‍व है। ऐसा सामने मंच पर होने में उनको कठिनाई पड़ गई। अगर वह चुपचाप और किसी एकांत स्‍थान में यक प्रयोग किया गया होता किसी को न बताया गया होता, जब तक कि घटना घट जाती, तो शायद संभव था कि यह घटना घट जाती। यह नहीं घट पायी। वह बात ही चूक गई।

जापन में जब इस घटना के दिन हजारों बौद्ध भिक्षु ….इंतजार कर रहे थे। कि कृष्‍ण मूर्ति आकर बस यह घोषणा करेंगे की में कृष्‍ण मूर्ति नहीं मैत्रेय हूं और मैत्रेय के तीनों शरीर उसमे प्रवेश कर जाते पर ऐसा नहीं हो सका। कृष्‍ण मूर्ति ने सालों की मेहनत का क्षण में खत्‍म कर दिया। कृष्ण मूर्ति ने अपने शरीर के छोड़ने से इनकार कर दिया। और इस लिए दूसरे शरीर के लिए जगह ही नहीं बन सकी। इस लिए यह घटना असफल हो गइ। और यह बड़ी भारी असफलता थी इस सदी की। जो आकलट साइंस (गुह्म विद्या) को मिली। इतना बड़ा ऐक्सपैरिमैंट (प्रयोग) भी कभी इससे पहले नहीं किया गया था। तिब्‍बत को छोड़ कर कहीं भी नहीं किया जा सका था। तिब्‍बत में बहुत दिनों से उस प्रयोग को करते रहे है, और बहुत सी आत्‍माएं वापस दूसरे शरीरों से काम करती रही है।

तो मरी बात तुम्‍हारे ख्‍याल में आ गयी। उसमें विरोध नहीं है। और मेरी बात में कहीं भी विरोध दिखे तो समझना कि विरोध होगा नहीं। हां कुछ ओर रास्‍ते से बात होगी,इसलिए विरोध दिखाई पड़ रहा है।

|| ओशो ||

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