विमलकीर्ति का समर्पण ~ ओशो


ओशो के शिष्यों में एक अनजाना सा नाम है-
विमल कीर्ति

यह जर्मनी सम्राट के पुत्र थे और ब्रिटेन प्रिंस चार्ल्स के बहनोई.
इन्होने ओशो को जर्मनी में सुना और परिवार समेत ओशो कम्यून में आ कर बस गए और काम ले लिया ओशो के गेट कीपर का.
ओशो के घर लाओत्ज़े हाउस की पहरेदारी करते -करते इन्हें बोधि प्राप्त हो गयी.




प्रातः जब ओशो प्रवचन के लिए निकलते- यह उस सहस्र दल कमल का प्रथम दीदार करते. उन्हें ओशो की प्रत्येक दिव्य भंगिमा से प्यार हो गया था.

ओशो ने उनसे मात्र सदा यही कहा- ' हेलो विमल कीर्ति'
और उत्तर में स्वामी विमल कीर्ति कहते- ' नमस्ते भगवान्'
हेलो विमल कीर्ति- उनके लिए जागरण का मन्त्र बन गया और द्वार की रक्षा निरहंकारिता और साक्षी की साधना.
वह जब भी मूर्छा में जाने को होते- ओशो की आवाज़ गूंज जाती-' हेलो विमल कीर्ति!

और तत्क्षण होश में आ जाते. उन्होंने यही ध्यान किया.
द्वार पर ओशो की प्रतीक्षा करना. मुख्य गेट खोलना - यह प्रार्थना में तब्दील हो गयी.

उन्हें उस क्षण का इंतज़ार रहता की कब भगवान प्रातः बुद्धा हाल के लिए निकलेंगे और उन्हें बोलेंगे- हेलो विमल किर्ती.
भगवान् का माधुर्य, उनकी आत्मीय मुस्कान विमल कीर्ति के ह्रदय में बस गयी थी.

भगवान कब आते- कब विदा होते उन्हें कुछ भान नही रहता. अनेक बार तो वह अचेत की भाँती अपने रक्षक कुर्सी पर किसी मखमली माधुर्य में डूब से जाते और घंटो भगवान की अलौकिक सुगंध के मखमली आगोश में अनुप्राणित होते रहते. उनके प्रेम के झोंके में रोते रहते. अकेले कभी -कभी नाचते रहते.

स्वभाव था क्षत्रिय का. राज परिवार से थे. सामुराई संस्कृति पसंद थी.
कराटे-कुंगफू का सेसन लेते .

जर्मनी और ब्रिटेन में उनके इस त्याग से खलबली मचने लगी. राज गद्दी के वारिस थे वे. प्रिंस चार्ल्स खुद भारत आकर उनसे कम्यून के बाहर मिले. उन्हें घंटो नही कई दिनों तक समझाया. ओशो विवादास्पद हो चले थे. विश्व दो ध्रुवो में विभक्त हो चला था- ओशो के पक्ष में या ओशो के विपक्ष में.

राजपरिवार ने एडी से चोटी का जोर लगा दिया की विमल कीर्ति को कम्यून से अलग किया जाय. भारत सरकार भी प्रयास रत रही- पर जाके हरी रंग लाग्यो.....

विमल कीर्ति २ दिन कम्यून से बाहर क्या रहे की वह विरह में रात को भाग आये वापस और लओत्ज़े हॉउस की कुर्सी पर फिर जा बैठे.

भगवान प्रातः -" हेल्लो विमल कीर्ति- इस एव्री थींग आल राईट?"

शायद पहली बार भगवान ने कुछ पुछा था- विमल कीर्ति के सारे प्रश्न भगवान के इस प्रश्न के साथ बह गए.. आंसुओ की धार बह निकली. भगवान आत्मीय मुस्कान के साथ आगे बढ गये .... 

विमल कीर्ति के ह्रदय ने निर्णय सुना दिया- अंतिम सांस इन्ही चरणों में निकलेगी. राज-पाट सब व्यर्थ.
' प्रिंस ऑफ़ हनोवेर' एक विद्रोही के अलौकिक सुगंध का मुरीद बन चुका था.

उसके दो छोटे छोटे बच्चे और सुंदर सी पत्नी विमल कीर्ति से पूछने तक की जरुरत नही समझे की क्या निर्णय है- जर्मनी का सिंहासन या फिर भगवान की पहरेदारी.
पहरेदारी तो भगवन कर रहे थे.

पुराना वादा था किसी जन्म का अब निभा रहे थे रजनीश,
विमल कीर्ति के ह्रदय से प्रेम काव्य की निर्झरणी बन कर बह चला
भगवान के प्यार में कविताये बरसने लगीं.

एक पुस्तक का संकलन तैयार हो गया. जिसका बाद में विमोचन भगवान ने किया.
एक दिन आया अंतिम अध्याय लिखा विमल कीर्ति ने.
" नित्य खुले ह्रदय में
पदचाप -पदचिन्ह अंकित करता हूँ
भक्ति के आश्रुओ से सिंचन
नेत्र निमीलित
ओ मेरे प्राण. मेरे भगवान..
यह क्षण कितना दिव्य है?
कितनी श्लाघ्य है हर भंगिमा तुम्हारी?
मेरा प्रेम - उसका कौमार्य
तुम्हारी दिव्यता से ओत प्रोत हैं
.................."

यात्रा पूरी हो चुकी थी.
आखिरी विदा की घड़ी आयी.

सोते हुए भगवान का चरण एक रूह ने छुआ था
विवेक ने खबर दी थी की विमल कीर्ति को ब्रेन हेमरेज हुआ है . वो कोमा में हैं.

मेडिकल साइंस की नादानी पर भगवान हलके से मुस्कुराए.
निर्विकल्प समाधि को ये कोमा कहते हैं.
विमल कीर्ति के तृष्णा का दीप बुझ चुका था.
मृत्यु तो कभी की हो चुकी थी.

पुराना धक्का और भगवान का प्रेम गाड़ी खिंच रहा था तो एक दिन भगवान की अनुमति भी मिल गयी. और विमल कीर्ति महाजीवन की यात्रा पर अपने सद्गुरु के आशीष के साथ प्रयाण कर गए.

बुद्धा हाल में उनका शव लाया गया.
भगवान ने आज्ञाचक्र पर अंगूठा रखा- मुक्ति का सनद मिला.
विमल कीर्ति मुक्त होकर गए थे.

" भगवान ने प्रवचन में कहा- विमल कीर्ति एक विद्रोही चेतना के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे"


ओशो 

Comments

  1. 🙏🙏🙏...#No Comment, please. Pure Pristine moments...!!!

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  2. वो उस समयका अध्भुत आदमी रहा होगा

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  3. अद्भुत आदमी था

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