प्रेम क्या है ~ ओशो


प्रेम है आनन्द की अभिव्यक्ति

जिस मनुष्य के पास प्रेम है उसकी प्रेम की मांग मिट जाती है। और जिसकी प्रेम की मांग मिट जाती है वही केवल प्रेम दे सकता है। मांग रहा है वह दे नहीं सकता है। इस जगत में केवल वे लोग ही प्रेम दे सकते हैं, जिन्हें आपके प्रेम की कोई अपेक्षा नहीं है। महावीर बुद्ध इस जगत को प्रेम दे सकते हैं। वे प्रेम से बिल्कुल मुक्त हैं। उनकी मांग बिल्कुल नहीं है। आपसे कुछ नहीं मांग रहे हैं, सिर्फ दे रहे हैं।





प्रेम का अर्थ है, जहां मांग नहीं है और केवल देना है। जहां मांग है, वहां प्रेम नहीं है, वहां सौदा है। जहां मांग है वहां प्रेम बिल्कुल भी नहीं है, वहां केवल लेन-देन है।यदि लेन-देन जरा-सा गलत हो जए तो जिसे हम प्रेम समझते थे, वह घृणा में परिणित हो जाएगा। लेन-देन गड़बड़ हो जाए तो मामला टूट जाएगा।


सारी दुनिया में जो प्रेम टूट जाते हैं, उसमें क्या बात है? उसमें कुल इतनी ही बात है कि लेन-देन गड़बड़ हो गई है। मतलब, हमने जितना चाहा, उतना नहीं मिला। जितना हमने सोचा था..दिया, लेकिन उसका उतना प्रतिफल नहीं मिला। सभी तरह के लेन-देन टूट जाते हैं। जहां लेन-देन है, वहां बहुत जल्दी प्रेम घृणा में परिणत हो सकता है, क्योंकि वहां प्रेम है ही नहीं। लेकिन जहां प्रेम केवल देना है, वहां शाश्वत है। वहां वह टूटता नहीं। वहां टूटने का कोई प्रश्न ही नहीं है।क्योंकि वहां मांग ही नहीं थी। आपसे कोई अपेक्षा नहीं थी। कोई कण्डीशन नहीं थी। प्रेम हमेशा अनंडीशनल है।
प्रेम केवल उस आदमी में होता हे जिसको आनन्द उपलब्ध हुआ हो। जो दुखी हो, वह प्रेम देता नहीं, प्रेम मांगता है ताकि उसका दुख मिट जाए। आखिर प्रेम की मांग क्या है? सारे दुखी लोग प्रेम चाहते हैं। उन्हें लगता है कि प्रेम मिल जाएगा तो उनका दुख मिटजाएगा, दुख भूल जाएगा। प्रेम की आकांक्षा भीतर दुख के होने का सबूत है। तो िफर प्रेम वह दे सकेगा जिसके भीतर दुख नहीं है। जिसके भीतर कोई दुख नहीं है, जिसके भीतर केवल आनन्द रह गया है,वह आपको प्रेम दे सकेगा।


मेरी बात ठीक से समझें, दुख भीतर हो तो उसका प्रकाशन प्रेम की मांग में होता है। और आनन्द भीतरहो तो उसका प्रकाशन प्रेम के वितरण में होता है। प्रेम आनन्द का प्रकाश है। तो जो आदमी भीतर आनन्द से भरेगा उसके जीवन के चारों तरफ प्रेम विकीर्ण हो जाएगा। जो भी उसके निकट आएगा उसेप्रेम उपलब्ध होगा। अगर मैं कहूं कि प्रेम आनन्द का प्रकाश है तो आनन्द आत्मबोध का अनुभव है। दुख है क्योंकि हम अपने को नहीं जानते, अपने को नहीं जानते इसलिए प्रेम मांगते हैं। अगर हम अपने को जानेंगे तो आनन्द होगा, आनन्द होगा तो प्रेम हमसे प्रस्फूटित होगा।

ओशो

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