Suno Bhai Sadho (Discourse 9)


तारी का मतलब है, सारे संसार के प्रति नींद हो गई, जैसे संसार है ही नहीं, और सिर्फ परमात्मा की तरफ आंख अटकी रह गई। अपलक, पलक झपती भी नहीं। यह होगा ही। क्योंकि जब दसवें द्वार पर पहली दफा कोई खड़ा होता है, और उसे विराट सौंदर्य को देखता है, उस अनंत ध्वनि को सुनता है, उस अमृत की धार में स्नान करता है, पहली बार ब्रह्मानंद का रस चखता है, तारी लग जाती है। तारी लग गई। अब सब संसार भूल गया।
ऐसा रामकृष्ण को बहुत बार हो जाता था कि वे छहछह दिन तक बेहोश पड़े रह जाते थेवह तारी की दशा थी। उनको कहीं भी लग जाती। वे रास्ते पर चल रहे हैं, और किसी ने कह दिया जय राम जीउनमी तरी लग लग गई, वे वही रास्ते पर खड़े रह गए; हाथपैर वैसे ही रह गए। लोग तो समझते कि विक्षिप्त हो गए। उठाकर घर लाना पड़ता। घंटों लग जाते तब तो होश में आते। कोई उनसे पूछता कि क्या हो जाता है, तो वे कहते ये शब्द ऐसे हैं कि याद आ जाती है। राम!...और मैं भीतर चला गया। वे दसवें द्वार पर पहुंच गए। यह शब्द जैसे चाबी हो गया। इसने एकदम दसवां द्वार खोल दिया। और जब कोई दसवें द्वार पर पहुंच जाता है, तो संसार से खो गया। वह रास्ते पर खड़ा हो, खतरा हो ट्रैफिक का कि कार में दबेगा कि बस में, कोई फिकर नहींवह वहीं खड़ा ही रहेगा।
रामकृष्ण को उनके भक्त जब कहीं ले जाते थे, तो खयाल रखते थे रास्ते में, कोई परमात्मा का नाम न ले दे! तो रास्ते में एक उपद्रव हो जाता है। और लोगों की तो कुछ समझ नहीं। लोग समझते हैं, यह पागल हो गया, दीवाना है! रामकृष्ण को लोग उत्सव, जलसों में नहीं बुलाते थे। क्योंकि यदि वह वहां पहुंच जाए तो वे खुद ही जलसा हो जाए। किसको रोको, कोई कुछ कह दे!
किसी के घर शादी थी। भक्त थे रामकृष्ण के, उनको बुलाया। पहले ही वे प्रार्थना कर गए थे कि आप खयाल रखना, क्योंकि शादी का वक्त है। पर रामकृष्ण कैसे खयाल रख सकते हैं! खयाल रखने वाला कौन! जब तारी लग जाती तो कैसा खयाल! कबीर ने कहा है कि पूरी मधुशाला पी गया हूं, और तुम खयाल की बात करते हो! थोड़ीबहुत शराब नहीं पी हैपरी मधुशाला...। रामकृष्ण गए। और जैसे ही वे दरवाजे में प्रवेश कर रहे थे, किसी ने कह दिया, जय राम जीवे वहीं खड़े हो गए! छह दिन तक! सब शादीविवाह ठंडा हो गया। दूल्हादुल्हन को लोग भूल गए, उनकी फिकर करनी जरूरी हो गई। वे गिर पड़ते और जब भी उठते, रोते उठते। आंख से आंसुओं की धार बह रही और चिल्लाते उठते कि मां, मुझे दूर क्यों किए दे रहे है? क्यों द्वार बंद हो रहा है? क्यों मुझे वापिस भेजा जा रहा है? उठते और रोते।
तारी का अर्थ है: दसवें द्वार का सम्मोहन। वहां से परमात्मा दिखता है। जिसकी आंख उस पर पड़ गई, सारा संसार खो जाता है। शुरुआत में तो चाहिए साथीसंगी, भक्त, जो ध्यान रख सके; अन्यथा वह आदमी मर जाएगा। क्योंकि वह छह दिन बेहोश पड़ा...पानी भी देना पड़ता है मुंह में, दूध भी देना पड़ता, पंखा भी करना पड़ता, ओढ़ाना भी पड़ता। उसे तो कुछ भी पता नहीं। वह इस दुनिया में है ही नहीं। लाश पड़ी है इस दुनिया में। वह तो किसी और देश में उड़ गया! कबीर कहते हैंचल हंसा वा देशवह जो दूसरा देश है, चल वहां!
नानक एक गांव से गुजर रहे थे। और हंस उड़ गए आकाश में। सरोवर के किनारे खड़े थे। और हंसो की एक कतार उठी और नानक उनके पीछे भागने लगे। मरदाना, उनका भक्त साथ था। उसने बहुत रोकने की कोशिश की कि यह क्या कर रहे हो; लेकिन वह रुके नहीं। मरदाना भी पीछे भागता रहा। जब तक हंस न रुक गए, तब तक नानक न रुके। लगता है हंस भी समझे। हंस रुक गए। नानक उनके पा पहुंच गए। मरदाना तो डरा कि वह पास जाएंगे तो वह फिर उड़ जाएगा, मगर वे नहीं उड़े। नानक उनके बीच बैठ गए। और आंखों से आंसुओं की धार बह रही है। और उन्होंने जो वचन कहे, वे बड़े अदभुत थे। उन्होंने कहा, हंसो, तुम तो बड़े दूर आकाश में उड़ते हो, तुमने जरूर उस बनानेवाले को कभी देखा होगा! तुम तो बड़ीबड़ी दूर की यात्रा पर जाते होचल हंसा वा देशतुमने जरूर मेरे बनानेवाले को देखा होगा! मैं उसकी तलाश में हूं, कुछ खोजखबर तो मुझे दो, कुछ पताठिकाना! फिर आंसू बह रहे हैं और वे वहीं रुके हैं। और एक परम मस्ती ने उनको घेर लिया।
मरदाना को वे हमेशा साथ रखते थे। मरदाना एक संगीतज्ञ था। जैसे ही नानक खोने लगते, वह अपना एकतारा छेड़ देता। वह एकतारा तरकीब थी उनको वापिस लाने की। वह मरदाना के एकतारा को सुनकर, तत्क्षण वापिस आ जाते थे। वह कुंजी थी। नहीं तो वे दसवें द्वार पर अटक जाएं, तो जो रामकृष्ण की हालत होती थी, वह नानक की होती।
लेकिन रामकृष्ण के पास मरदाना जैसा कोई कुशल कलाकार नहीं था, क्योंकि वह वही धुन बजाता था, जो वापिस लौटा ले। धीरेधीरे, धीरेधीरे नानक वापिस आ जाते, स्वस्थ हो जाते, शरीर में हो जाते। मरदाना को उन्होंने जीवनभर साथ रखा। मरदाना मुसलमान था, नानक हिंदू थे। मंदिर में भी जाते तो तभी जाते जब मरदाना साथ जा सके, क्योंकि मंदिर में तारी लग जाए! अगर कोई मंदिर कहता कि मुसलमान को न जाने देंगे तो वह मंदिर नानक के जाने के लिए बंद थे।
तारी का अर्थ है, जब कोई दशम द्वार पर खड़ा होगा। जब कोई दसवें द्वार के आगे निकल जाता है, तब फिर तारी नहीं लगती। बुद्ध और महावीर को तारी नहीं लगती। इस दसवें द्वार पर खड़े हो कर जब कोई देखता है, उस अनंत के सौंदर्य को, तब तारी लगती है। इसलिए याद रखना इस बात को। रामकृष्ण को जैसी बेहोशी थी, ऐसी बुद्ध और महावीर के जीवन में कभी नहीं आई। दसवें द्वार पर रुककर उन्होंने देखा नहीं। वे तो सीधे उतर गए, द्वार पर ध्यान ही नहीं दिया। द्वार के पार कौन है, उस तरफ भी नहीं देखावे चले ही गए। वे खुद ही एक हो गए उसके साथ। फिर तारी नहीं लगती, क्योंकि द्वैत चाहिए, तारी लगने को। परमात्मा अलग, मैं अलग। मैं अपने घर पर खड़ा हूं। परमात्मा मुझे दिखाई पड़ रहा हैतब तारी लगती है। जब मैं डूब ही गया परमात्मा में, एक हो गया, तब तारी नहीं लगती। तारी किसकी लगेगी? तारी भक्त की लगती थी, भगवान की नहीं।

सुनो भाई साधो , प्रवचन # 9
  ओशो

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