माया से नहीं, मन से छूटना है ~ ओशो
जापान की प्रसिद्ध कहानी है। एक आदमी की पत्नी
मरी।
पत्नियां, पहली तो बात,
आसानी
से मरतीं नहीं; अक्सर तो पतियों को मार कर मरती हैं। स्त्रियां
ज्यादा जीती हैं, यह खयाल रखना--पांच साल औसत ज्यादा जीती हैं।
आदमी को यह भ्रम है कि हम मजबूत हैं। ऐसी कुछ खास मजबूती नहीं। स्त्रियां ज्यादा
मजबूत हैं। उनकी सहने की क्षमता, सहनशीलता आदमी से बहुत ज्यादा है।
स्त्रियां कम बीमार पड़ती हैं; आदमी ज्यादा बीमार पड़ता है। स्त्रियां
हर बीमारी को पार करके गुजर जाती हैं; आदमी हर बीमारी में टूट जाता है,
कोई
भी बीमारी तोड़ देती है उसे। और सारी दुनिया में स्त्रियां पांच साल आदमियों से
ज्यादा जीती हैं--औसत। और फिर आदमियों को और एक अहंकार है कि समान उम्र की स्त्री
से विवाह नहीं करते; पच्चीस साल का जवान हो तो उसे बीस साल की लड़की
चाहिए। तो पांच साल का और फर्क हो गया। सो ये भैया दस साल पहले मरेंगे। इसलिए
दुनिया में तुम्हें विधवाएं बहुत दिखाई पड़ेंगी, विधुर इतने
दिखाई नहीं पड़ेंगे।
मगर कभी-कभी चमत्कार भी होता है, वह
स्त्री मर गई। मगर मरते-मरते अपने पति को कह गई कि सुन लो, लफंगेबाजी नहीं
चलेगी। पति ने कहा: क्या मतलब? पति तो दिल ही दिल में खुश हो रहा था
कि यह झंझट कटी। अभी दो दिन पहले ही डाक्टर ने उससे कहा था कि मैं बहुत दुखी हूं,
लेकिन
पत्नी दो दिन से ज्यादा नहीं बचेगी। तो उसने डाक्टर को कहा था कि नाहक दुखी न हों।
अरे जब मैंने तीस साल कष्ट झेल लिया तो दो दिन और सही। इसमें दुखी होने की क्या
बात है? तीस साल गुजर गए तो दो दिन और सही।
पत्नी कहने लगी कि अब मैं मरने के करीब हूं,
तुम्हें
बताए जा रही हूं कि मैं मर कर भूत-प्रेत होऊंगी और तुम्हारा पीछा करूंगी। और ध्यान
रखना, भूल कर भी किसी और स्त्री के साथ संबंध मत बनाना, नहीं
तो मैं तुम्हें सताऊंगी, मैं रोज आऊंगी रात।
पति डरा तो बहुत, कर भी कुछ नहीं
सकता, अब करे भी क्या! पत्नी मर गई। पहली रात बहुत घबड़ाया हुआ घर आया। डरा
हुआ था। जंतर-मंतर पढ़ रहा था। मगर ठीक वक्त पर कोई बारह बजे पत्नी ने दरवाजे पर
दस्तक दी। दरवाजा खोला तो वह सामने खड़ी थी। पसीना-पसीना हो गया, पैर
कंप गए, गिरते-गिरते बचा। पत्नी ने कहा कि यह तो तुमने हरकत शुरू कर दी। तुम
शराब पीकर आए हो और मैंने लाख दफे समझाया कि शराब पीना बंद करो। और तब तो मैं घर
में रहती थी, तो मुझे बैठ कर अंतर्दृष्टी से पता लगाना पड़ता
था--तुम कहां गए, क्या कर रहे हो? अब नहीं चलेगा।
अब तो तुम जहां जाओगे वहां मैं देख सकती हूं, वहां मैं आ सकती
हूं। तुम शराबघर से आ रहे हो। तुमने इतनी शराब पी। और तुम उस स्त्री को घूर-घूर कर
देख रहे थे!
बात बिलकुल सच थी। इतनी उसने शराब पी थी। और
शराब पीकर जब बाहर निकला था तो एक सुंदर स्त्री को घूर-घूर कर भी देखा था। और उसने
कहा कि सावधान रहो, आज तो पहला दिन है, क्षमा कर देती
हूं, कल से खयाल रखना।
उस आदमी की तो जान मुश्किल में पड़ गई। जिंदा थी,
वही
बेहतर था। कुछ बहाने भी खोज लेता था। कह देता था कि दफ्तर में ज्यादा काम
है।...दफ्तर में काम ज्यादा निकलता है, हरेक को ज्यादा निकलता है। दफ्तर में
दिन भर लोग काम करते ही नहीं--और ज्यादा काम निकलता है! ओवरटाइम! दफ्तर से फोन
करते हैं कि आज नहीं आ सकेंगे, आज बहुत काम है। घर से बचते हैं जितना
बच सकें। जमाने भर में भटकेंगे, घर भर नहीं आएंगे। घर तो आते ही तब हैं
जब सब होटलें और सब शराबघर, सब रेस्तरां बंद हो जाते हैं, और
जब कहीं इनको जगह नहीं मिलती तब घर आते है। क्योंकि घर तो हमेशा खुला हुआ है।
पत्नी बैठी होगी तैयार।
अब तो इसकी बड़ी मुश्किल हो गई। कोई बहाना न
चले। जो भी बहाना लेकर आए, वह कहे कि तुम मुझे बना रहे हो?
मैं
वहां मौजूद थी। तुम दफ्तर गए? झूठ बोल रहे हो। तुम आज दिन भर दफ्तर
नहीं गए। तुम कहां थे, मुझे रत्ती-रत्ती पता है।
उस आदमी की तो हालत हड्डी-हड्डी हो गई। यह
स्त्री क्या मरी, जिंदा थी वही अच्छा था। सोचता था कि मर जाएगी
तो बड़ा सुख मिलेगा, यह तो महाकष्ट हो गया। किसी ने सुझाव दिया कि
गांव में एक फकीर आया हुआ है, तू उसके पास जा, शायद वह कुछ कर
सके। फकीर के पास गया। फकीर को सारी बात बताई। फकीर ने कहा: एक काम कर। मुट्ठी
खोल। और फकीर ने मुट्ठी भरी, पास में ही चावल रखे थे, मुट्ठी
भर कर उसके हाथ में दे दिए। और कहा कि मुट्ठी बंद कर ले, अब खोलना मत,
घर
जा। और जब वह आए तो उससे कहना कि अगर तू सच में है, तो मेरी मुट्ठी
में कितने चावल हैं, इनकी गिनती करके बता दे!
उसने कहा कि वह बता देगी। वह एक-एक चीज गिन कर
बता रही है--कहां जाता हूं, किससे बात करता हूं, क्या
कहता हूं। वह यह भी बताएगी कि अच्छा तो तुम उस फकीर के पास गए थे! वह फकीर मेरा
बाल बांका नहीं कर सकता, वह कहेगी।
उसने कहा: वह सब कहे, मगर ये चावल के
दाने जब तक गिन कर न बताए। कल तू मुझे आकर खबर करना।
वह घर गया, वह पत्नी मौजूद
थी। उसने कहा: तो गए थे उस फकीर के पास? वह क्या जानता है! उसकी हैसियत क्या
है! इस-इस ढंग के कपड़े पहने हुए था? ऐसे-ऐसे मकान में बैठा हुआ था? पास
में चावल रखे हुए थे? मुट्ठी भर कर उसने तेरी मुट्ठी में चावल दिए
हैं और कहा है कि उससे कहना कि गिनती करके बता। बोल, इसमें कुछ झूठ
है?
वह घबड़ा गया। उसने कहा कि फकीर का भी कुछ वश
चलेगा नहीं इस पर, यह तो इसको सब पता है। पर उसने कहा, अब
आखिरी कोशिश कर ही लो। उसने कहा कि हां, यह सब ठीक है। मगर चावल कितने हैं?
उनकी
गिनती करके बता!
जैसे ही उसने यह कहा, वह स्त्री एकदम
नदारद हो गई। वह चावल की गिनती न कर सकी। चारों तरफ खोजा, घर भर में खोजा,
चिल्लाता
फिरा कि भई कहां गई तू? चावल की गिनती बता! मगर कोई उत्तर नहीं,
कोई
पता नहीं। दूसरे दिन सुबह आया, फकीर से बोला कि चमत्कार कर दिया! ये
चावल क्या हैं, गजब हैं! इनको मैं क्या सदा हाथ में ही रखे
रहूं? रात भर इनको हाथ में ही रखे रहा, कपड़ा बांध लिया,
कि
इनमें कोई चमत्कार है।
उसने कहा: कोई चमत्कार नहीं है। जो बातें तू
जानता है, बस वही तेरी पत्नी कह सकती है। जो तू ही नहीं जानता, वह तेरी
पत्नी नहीं कह सकती। वह पत्नी वगैरह कुछ नहीं है, कोई भूत-प्रेत
नहीं, तेरा मन है। तू इतना जानता था कि फकीर के यहां गया, वह
कैसा बैठा था, उसने चावल भर कर दिए। तेरे को भी पता नहीं कि
संषया कितनी है।
अगर तुझे पता होती तो उसको भी पता होता । वह है
नहीं। वह कोई भी नहीं है, तेरे मन का ही फैलाव है। चावल वगैरह का
कोई जादू नहीं है। अब चावल में न बंध। ला चावल वापस कर। चावल छोड़ दे वापस अपनी जगह,
जहां
से उठाए थे। अगर तुझे चावलों की गिनती मालूम हो गई तो वह औरत तुझे फिर सताएगी।
उसको भी मालूम हो जाएगी। वह स्त्री कुछ भी नहीं, तेरे मन का
प्रतिफलन है, तेरे मन का ही साकार रूप है।
ऐसे ही तुम्हारे मन की ही सारी लीला है,
कोई
और लीला नहीं है। तुम्हारा ही सब खेल है, कोई और खेल नहीं है। माया से नहीं
छूटना है, मन से छूटना है। और छूटने के लिए कहीं नहीं जाना--ध्यान में जागना
है।
रहिमन धागा प्रेम का, प्रवचन 2
ओशो
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