वासना और प्रेम ~ ओशो


कामुकता विदा हो सकती है लेकिन स्त्री आकर्षण विदा नही होता है| आकर्षण जीवन के अंत तक रहता है | वासना नही जाती सिर्फ वासना परिवर्तन होती है जिसे प्रेम कहते है |वासना का ही दूसरा रूप प्रेम है| वासना और प्रेम अलग अलग नही है| वासना की शुद्तं अवस्था प्रेम है ! 




कोई भी पुरुष सीधा स्त्री की ओर आकर्षित होगा प्रथम उसका काम केंद्र जागेगा उर्जा काम के रूप में प्रकट होती है | लेकिन कामुकता जागते ही हम ध्यानी या द्रष्टा बन जाय तब जागी हुई काम उर्जा , ध्यान से प्रेम में परिवर्तन होती है .लेकिन तुम चाहते हो की काम बिलकुल पैदा ही न हो तब प्रेम का अस्तित्व भी सम्भव नही है | स्त्री में सीधा प्रेम उठता है क्योकि उसका मूल उर्जा केंद्र हदय स्थित है लेकिन पुरुष में सीधा प्रेम नही उठता है पुरुष की स्थति एक कुए जैसी है कुए रूपी मूलाधार में दुबकी लगाकर वापस ह्दय में उर्जा को लाना पड़ता है, तब काम उर्जा प्रेम बन जाती है| फिर वहा से वह उर्जा बहती है तब वह अन्यो के ह्दय भी जगाती है .काम से सिर्फ स्त्री का गर्भ केंद्र जगाया जा सकता है |जिससे संसार जन्मता है |उर्जा एक ही है उससे स्त्री का गर्भ केंद्र जगाओ या स्त्री का ह्दय जगाओ |पुरुष प्रथम काम क्रिया सभाविक है वह प्रक्रतिक है लेकिन उस उर्जा को हदय में ले जाना परिश्रम है पुरुषार्थ है .ध्यान .है तप है |

स्त्री एक महीने में एक बार काम में जाने की इच्छा करती है क्योकि उस ऋतुकाल में गर्भ केंद्र सवेदनशील रहता है इसलिए ऋतुकाल में स्त्री की मनोस्थिति कष्टदायक होती है| उस ऋतुकाल में तब स्त्री की मांग काम रहती है| इसिलए स्त्री ऋतुकाल को अपवित्र कहा गया है |

स्त्री की मांग सदा प्रेम की होती है वह काम में इसलिए जाती है क्योकि काम पुरुष की सबसे बड़ी कमजोरी है इस कमजोरीसे वह पुरुष के साथ काम में रस लेती है |गहरे अर्थो में स्त्री काम नही चाहती वह पुरुष की काम की मांग से पुरुष का मन चाहा उपयोग करती है ! जब तक परुष स्त्री को प्रेमनही मिलता है वहा तक स्त्री को पुरुष के साथ काम में रस रहता है | जब स्त्री को परुष से प्रेम मिलना आरम्भ हो जाता है तब स्त्री भी पुरुष से काम नही चाहती है | तब वह से दोनों को ब्रह्मचर्य फलित होता है , वह सन्यास है ,वह तन्त्र योग है ,जहा तक पुरुष प्रेम की कला नही सीखता है वहा तक वह स्त्री ( पत्नी) का गुलाम बना रहता है |

ओशो

Comments

  1. 🙏🙏💐🎉🎈🐇🐧

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  2. Pranam , very nice quotes you have posted. Can you kindly tell me , from which book of Osho you have taken out these lines.

    Thankyou

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