अगर बीज देखा तो फूल पर भरोसा नहीं आता ~ ओशो
जीसस अपने गांव में आये, बड़े हैरान हुए.
गांव के लोगों ने कोई चिंता ही न की। जीसस का वक्तव्य है कि पैगंबर की अपने गांव
में पूजा नहीं होती। कारण क्या रहा होगा? क्यों नहीं होती गांव में पूजा पैगंबर
की? गांव के लोगों ने बचपन से देखा : बढ़ई जोसेफ का लड़का है! लकड़ियां ढोते
देखा, रिंदा चलाते देखा, लकड़ियां चीरते देखा, पसीने
से लथपथ देखा, सड़कों पर खेलते देखा, झगड़ते देखा।
गांव के लोग इसे बचपन से जानते हैं—बीज की तरह देखा। आज अचानक यह हो कैसे
सकता है कि यह परमात्मा का पुत्र हो गया!
नहीं, जिसने बीज को देखा है, वह
फूल को मान नहीं पाता। वह कहता है, जरूर धोखा होगा, बेईमानी होगी।
यह आदमी पाखंडी है।
बुद्ध अपने घर वापस लौटे, तो
पिता. सारी दुनियां को जो दिखाई पड़ रहा था वह पिता को दिखायी नहीं पड़ा! सारी
दुनियां अनुभव कर रही थी एक प्रकाश, दूर—दूर तक खबरें जा
रही थीं, दूर देशों से लोग आने शुरू हो गये थे; लेकिन जब बुद्ध
वापस घर आये बारह साल बाद, तो पिता ने कहा मैं तुझे अभी भी क्षमा
कर सकता हूँ यद्यपि तूने काम तो बुरा किया है, सताया तो तूने
हमें, अपराध तो तूने किया है; लेकिन मेरे पास पिता का हृदय है। मैं
माफ कर दूंगा। द्वार तेरे लिए खुले हैं। मगर फेंक यह भिक्षा का पात्र! हटा यह
भिक्षु का वेश! यह सब नहीं चलेगा। तू वापस लौट आ। यह राज्य तेरा है। मैं का हो गया,
इसको
कौन सम्हालेगा? हो गया बचपना बहुत, अब बंद करो यह
सब खेल!
बुद्ध ने कहा. कृपा कर मुझे देखें तो! जो गया
था वह वापिस नहीं आया है। यह कोई और ही आया है। जो आपके घर पैदा हुआ था वही वापिस
नहीं आया है। यह कोई और ही आया है। बीज फूल हो कर आया है। गौर से तो देखो।
पिता ने कहा, तू मुझे सिखाने
चला है? पहले दिन से, जब तू पैदा हुआ था, तबसे
तुझे जानता हूं। किसी और को धोखा देना। किसी और को समझा लेना, भ्रम
में डाल देना। मुझे तू भ्रम में न डाल पायेगा। मैं फिर कहता हूं। मैं तुझे
भलीभांति जानता हूं। मुझे कुछ सिखाने की चेष्टा मत कर। क्षमा करने को मैं राजी
हूं।
बुद्ध ने कहा : आप, और मुझे जानते
हैं! मैं तो स्वयं को भी नहीं जानता था। अभी—अभी किरणें उतरी
हैं और स्वयं को जाना हूं। क्षमा करें! लेकिन यह मुझे कहना ही पड़ेगा कि जिसको आपने
देखा, वह मैं नहीं हूं। और जहां तक आपने देखा, वह मैं नहीं
हूं। बाहर—बाहर आपने देखा, भीतर आपने कहां देखा? मैं
आपसे पैदा हुआ हूं लेकिन आपने मुझे निर्मित नहीं किया। मैं आपसे आया हूं जैसे एक
रास्ते से कोई राहगीर आता है, लेकिन रास्ता और राहगीर का क्या लेना—देना?
कल
रास्ता कहने लगे कि मैं तुझे पहचानता हूं तू मेरे से ही तो होकर आया है—ऐसे
ही आप कह रहे हैं। आपके पहले भी मैं था। जन्मों—जन्मों से मेरी
यात्रा चल रही है। आपसे गुजरा जरूर हूं ऐसा मैं औरों से भी गुजरा हूं। और भी मेरे
पिता थे, और भी मेरी माताएं थीं। लेकिन मेरा होना बडा अलग— थलग
है।
कठिन है बहुत, अति कठिन है!
अगर बीज देखा तो फूल पर भरोसा नहीं आता।
एक तो ढंग है अश्रद्धालु का, तर्कवादी
का, संदेहशील का, कि वह कहता है कि बीज को हम पहचानते
हैं, तो फूल हो नहीं सकता। हम कीचड़ को जानते हैं, उस कीचड़ से कमल
हो कैसे सकता है? सब गलत! सपना होगा। भ्रांति होगी। किसी मोह—जाल
में पड़ गये होओगे। किसी ने धोखा दे दिया। कोई जादू कोई तिलिस्म। एक तो यह रास्ता
है।
एक रास्ता है श्रद्धालु का—प्रेमी
का, भक्त का, सहानुभूति से भरे हृदय का—वह
फूल को देखता है और फूल से पीछे की तरफ यात्रा करता है। वह कहता है, जब
फूल में ऐसी सुगंध हुई, जब फूल में ऐसी विभा प्रगट हुई, जब
फूल में ऐसी प्रतिभा, जब फूल में ऐसा कुंआरापन दिखा, तो
जरूर बीज में भी रहा होगा। क्योंकि जो फूल में हुआ है वह बीज में न हो, तो
हो ही नहीं सकता।
ओशो
अष्टावक्र महागीता–(भाग–1)
Comments
Post a Comment