सम्राट वही जिसकी अब कुछ पाने के मांग न हो ~ ओशो

एक फकिर था. एक बहुत बडे बादशाह से उसका बहुत गहरा प्रेम था. उस फकिर से गांव के लोगों ने कहा, बादशाह तुम्हें इतना आदर देते हैं, इतना सम्मान देते हैं. उनसे कहो कि गांव में एक छोटा सा स्कूल खोल दें.



उसने कहा, मैं जाऊं, मैंने आज तक कभी किसी से कुछ मांगा नहीं, लेकिन तुम कहते हो तो तुम्हारे लिए मांगू.

वह फकिर गया. वह राजा के भवन में पहुंचा. सुबह का वक्त था और राजा अपनी सुबह की नमाज पढ रहा था. फकिर पीछे खडा हो गया. नमाज पूरी की, प्रार्थना पूरी की. बादशाह उठा. उसने हाथ ऊपर फैलाया और कहा,

हैं परमात्मा, मेरे राज्य की सीमाओं को और बडा कर. मेरे धन को और बढा, मेरे यश को और दूर तक आकाश तक पहुंचा. जगत की कोई सीमा न रह जाए जो मेरे कब्जे में न हो, जिसका मैं मालिक न हो जाऊं, हे परमात्मा, ऐसी कृपा कर. उसने प्रार्थना पूरी की, वह लौटा.

उसने देखा कि फकिर सीढियों से नीचे उतर रहा है. उसने चिल्लाकर आवाज दी क्यों वापस लौट चले ? फकिर ने कहा, मैं सोचकर आया था कि किसी बादशाह से मिलने आया हूं.

यहां देखा कि यहां भी भिखारी मौजुद है. और मैं तो दंग रह गया, जितनी बडी जिसकी मांग हो उतना ही बडा वह भिखारी होगा. तो आज मैंने जाना कि जिसके पास बहुत कुछ है तो वह बहुत कुछ होने से कोई मालिक नहीं होता.

मालिक की पहचान तो इससे होती है कि कितनी उसकी मांग है. अगर कोई मांग नहीं तो वह मालिक है, बादशाह है, और अगर उसकी बहुत बडी मांग है तो उतना बडा भिखारी है.

दुनिया बडी अजिब है. यहां जो जितना बडा धनी है वही भितर से उतना ही निर्धन भी है. निर्धन होता है. और बडे से बडे पर्दो पर बैठा हुआ व्यक्ति अपने भीतर बहुत दयनीय और दरिद्र होता है. अपने को जितने में बहुत असफल और असमर्थ होते है .

सम्राट वही जिसकी अब कुछ पाने के मांग न हो. आप भी जरा सोचों वह व्यक्ति भी क्या ख़ाक सम्राट होगा जिसकी चाह, मांग अभी मांग बाकी हो. अगर बहुत कुछ पा कर भी आपकी मांग न भरी हो तो आप एक गरीब व्यक्ति से कम नहीं.

इसलिए विद्वानों नें संतोष को ही सबसे बड़ा धन कहा हैं |   


ओशो

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